पालघर हत्याकांड के दोषी कितने हैं?

क्या साधु-संत, पीर-फकीर होना अब देश में संगीन गुनाह है? क्या लोगों को अब जनकल्याण की सच्ची राह दिखाने वाले साधु-संत, पीर-फकीर नहीं चाहिए? चंद अमानवीय लोगों का गुनाह आखि़र कब तक मानवता पर भारी रहेगा?

-राजेश कुमार,

आज देशवासियों के ज़हन में यह ज्वलंत सवाल है कि पालघर हत्याकांड के दोषी कितने हैं? सीधे तौर पर देखा जाए तो पहला दोषी है वह पुलिस सिस्टम जो स्वभाव से ही शांत प्रवृति के दो साधुओं को सुरक्षा न दे सका। दूसरा दोषी है वह भीड़तंत्र जिसने न्याय के सिधांत की धज्जियों उड़ाते हुए कानून को अपने हाथ में लेकर पुलिस की मौजूदगी में बिना कुछ पूछे-जाने साधुओं को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया। तीसरा दोषी है आज का अवसरवादी राजनीतिक तंत्र जिसने इस हत्याकांड को सांप्रदायिक रंग देने की पूरी कोशिश की। कथित हत्याकांड के दौरान जिस किसी ने भी विडियो बनाकर वायरल की, उससे उजागर हुआ कि पालघर में तीन बेगुनाहों की हत्या नहीं हुई है इंसानियत का क़त्ल इंसानों के हाथों ही हुआ है और पुलिस तमाशबीन बनी हुई थी। डरा-सहमा हुआ एक साधु ज़िदगी बचाने की उम्मीद में पुलिस वाले का हाथ पकड़े हुए था, लेकिन वह पुलिसकर्मी केवल और केवल इस दिलदहलाने वाली घटना का चश्मदीद गवाह बनकर रह गया! और सरेआम इसके बाद कथित निर्मम हत्याकांड से राजनैतिक फायदा उठाने के लिए इसका रंग सांप्रदायिक कर दिया गया, परन्तु देशवासियों ने धैर्य बनाए रखा, जिससे इनकी आंखों के सामने दूध- का-दूध और पानी-का-पानी होता चला गया।
गौरतल रहे कि पालघर में तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या किए जाने के मामले की जांच सीबीआई जैसी किसी स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने या इसके लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करने की मांग को लेकर बंबई उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है। वकील अलख आलोक श्रीवास्तव द्वारा दायर याचिका में यह भी मांग की गई है कि उच्च न्यायालय जांच की निगरानी करे और जांच एजेंसी से समय-समय पर रिपोर्ट मांगे। जनहित याचिका (पीआईएल) में यह भी मांग की गई है कि इस मामले में तेजी लाई जाए और कार चालक के परिवार को वित्तीय मुआवजा प्रदान किया जाए, जो उन तीन व्यक्तियों में शामिल थे, जिनकी भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। यह घटना 16 अप्रैल की रात को हुई जब तीन लोग-दो साधू और इन्हें गाड़ी में ले जा रहे एक ड्राइवर, एक अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए मुंबई से एक कार से गुजरात के सूरत की ओर जा रहे थे, उनकी गाड़ी को पालघर जिले के एक गढचिंचले गांव के पास रोक दिया गया, जहां बच्चा चोर होने के शक में तीनों को कार से खींचकर बाहर निकाला गया और भीड़ ने तीनों की डंडों से पीट-पीटकर हत्या कर दी। मृतकों की पहचान महाराज कल्पवृक्ष गिरि(70), सुशील गिरि महाराज(35) और चालक नीलेश तेलगड़े(30) के रूप में की गई। याचिका में कहा गया है कि मामले में अब तक 101 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। जिसे राज्य के अपराध जांच विभाग (सीआईडी) को सौंप दिया गया है, सरकार ने लापरवाही के लिए पालघर के दो पुलिस कर्मियों को निलंबित भी किया है।
पालघर पुलिस ने इस मामले में 110 लोगों की गिरफ्तारी की है। जिसमें से 9 लोग नाबालिग हैं, मामले में दो पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया गया है। फेसबुक पर पोस्ट वीडियो में महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने कहा है कि गिरफ्तार 101 लोगों में से एक भी मुसमलान नहीं है। इस घटना के वीडियो के कई छोट-छोटे हिस्से वायरल हुए हैं। जिसमें साधु रोते हुए हाथ जोड़कर भीड़ के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं, लेकिन भीड़, जिसके हाथ में डंडे हैं वो साधुओं पर हमला बोल देती है। स्थिति को संभालते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने कहा कि पालघर हत्याकांड सांप्रदायिक नहीं है। उद्धव ठाकरे ने मामले में सख़्त कार्रवाई का वादा भी किया है। उप-मुख्यमंत्री अजीत पवार ने भी कहा कि कथित मामले में सीआईडी की जांच चल रही है और 100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पड़ोसी पालघर जिले के कासा थानांतर्गत भीड़ ने दो साधुओं और उनके ड्राइवर की पीट-पीटकर हत्या कर दी। तीनों लाॅकडाउन के दौरान एक अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए गुजरात में सूरत जा रहे थे। पवार के हवाले से एक बयान में कहा गया, ‘‘पालघर की घटना मानवता पर धब्बा है और यह निंदनीय है।’’ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी महाराष्ट्र के पालघर में हुई माॅब लिंचिग के मामले पर राज्य के डीजीपी को नोटिस जारी किया है। एनएचआरसी ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई और मृतक व्यक्तियों के परिजनों को दी गई सहायता पर 4 सप्ताह के भीतर एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। मामले में मानवाधिकार आयोग की ओर से कहा गया है, घटना सार्वजनिक रूप से लोक सेवकों द्वारा लापरवाही को दिखाती है।
गौरतलब है कि पालघर घटना से नाराज अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (एबीएपी) ने घटना के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होने पर बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करने की धमकी दी है। महंत गिरी ने कहा, अगर सभी दोषियों को सजा नहीं दी गई तो लाखों नागा साधु और विभिन्न अखाड़ों के सदस्य लाॅकडाउन हटने के बाद महाराष्ट्र की ओर मार्च निकालेंगे। महाराष्ट्र सरकार को सभी पुलिस अधिकारियों को नौकरी से निकाल देना चाहिए जो संतों की रक्षा करने में विफल रहे। एबीएपी के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा कि महाराष्ट्र में रावण राज है, जहां पुलिस की मौजूदगी में साधुओं की हत्या की जा रही है। उन्होंने पुलिस अधिकारियों को निकाल देने और उनकी गिरफ्तारी की मांग की, कहा कि जिस पूरे इलाके में घटना हुई है, उसे सील किया जाना चाहिए लाॅकडाउन हटने के बाद अखाड़ा परिषद हरिद्वार में आंदोलन की रणनीति तैयार करेगा। इन हत्याओं की निंदा करने के लिए कोई शब्द नहीं हैं। वीडियो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पुलिस निर्दोष साधुओं की रक्षा करने में विफल रही है, अन्य अखाड़ों के प्रमुखों ने भी इस घटना की निंदा की है। एक ओर देश मौत की महामारी (कोरोना) से जूझ रहा है, दूसरी ओर पालघर हत्याकांड की वज़ह से देशभर में आक्रोश का माहौल है।
साधू-संतो का भी नाराज़ होना लाज़मी है। क्या भीड़ को दिखाई नहीं दे रहा था कि दो साधु कार में बैठकर, जिसे एक ड्राइवर चला रहा था, गांव में बच्चा चुराने आएंगे? और अगर यह चोेर होते भी तो क्या लोगों को इनसे पहले पूछताछ नहीं करनी चाहिए थी कि तुम लोग कहां से आ रहे हो? और कहां जाना है? तुम्हारी पहचान क्या है? इस गांव में आने का कारण क्या है? शक होने पर पुलिस के हवाले कर देते। जब कोई अपराध इन साधुओं ने किया ही नहीं, फिर सज़ा के रूप में इन्हें मौत किस वारदात पर दी गई है? पहली नज़र में दोषी पुलिस वालों को अभी तक बखऱ्ास्त क्यों नहीं किया गया? क्या पूरा का पूरा थाना निलंबित नहीं होना चाहिए था? क्या जांच इस दिशा में नहीं होनी चाहिए कि यह हत्याकांड कोरी अफवाह के कारण हुआ है या फिर किसी गहरी साज़िश के तहते? क्या इस हत्याकांड पर फास्ट टैªक कोर्ट में केस नहीं चलना चाहिए? क्या साधु-संत, पीर-फकीर होना अब देश में संगीन गुनाह है? क्या लोगों को अब जनकल्याण की सच्ची राह दिखाने वाले साधु-संत, पीर-फकीर नहीं चाहिए? चंद अमानवीय लोगों का गुनाह आखि़र कब तक मानवता पर भारी रहेगा?

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